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Makar Sankranti : क्‍यों मनाई जाती है 14 जनवरी को मकर संक्रांति ?

Makar Sankranti

Makar Sankranti

Makar Sankranti हिंदुओं का विशेष पर्व है। इस द‍िन स्‍नान और दान का खास महत्‍व माना गया है। मान्‍यता है क‍ि इसी दिन ही भगवान शिव शंकर ने अपनी जटा से मां गंगा को धरती पर उतारा था।

Makar Sankranti 14 जनवरी को मनाया जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करना, दान और पूजा करने का विशेष महत्व होता हैं। शास्त्र के अनुसार इस दिन सूर्य देवता दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर प्रस्थान करते हैं। सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने के कारण इस दिन को मकर संक्रांति कहा जाता हैं।

Makar Sankranti से जुड़े उत्सवों को विभिन्न नामों से जाना जाता है, जिनमें असम में माघ बिहू, हिमाचल प्रदेश में माघी साजी, पंजाब में माघी संग्रांद, जम्मू में माघी संग्रांद या उत्तरैण (उत्तरायण), हरियाणा में सकरात, राजस्थान में सकरात, तमिलनाडु में पोंगल, गुजरात और उत्तर प्रदेश में उत्तरायण, उत्तराखंड में घुघुती, बिहार में दही चूड़ा, ओडिशा, कर्नाटक, झारखंड, महाराष्ट्र, गोवा, पश्चिम बंगाल में मकर संक्रांति शामिल हैं।

हिंदू धर्म शास्त्र के अनुसार इस दिन खरमास समाप्त हो जाता है और सभी शुभ कार्य का प्रारंभ होते हैं। Makar Sankranti को लेकर कई सारी कहानी कथाएं प्रचलित है। कुछ कथा के अनुसार इसी दिन सूर्य देवता अपने पुत्र शनि देव को मनाने के लिए उनके घर जाते हैं।

Makar Sankranti Vrat Katha

Makar Sankranti की कथा के अनुसार – एक बार राजा सागर ने अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान किया और उस अनुष्ठान में अपने घोड़े को विश्व विजय के लिए खुला छोड़ दिया। तब इंद्रदेव ने उस घोड़े को छल कर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। यह बात जब राजा सागर ने जानी, तो वह कपिल मुनि के आश्रम 60,000 पुत्र युद्ध को लेकर वहां पहुंच गए। यह सब देखकर कपिल मुनि को क्रोध आ गया और उन्हें श्राप देकर सभी को भस्म कर दिया।

तब राजा सागर के पोते राजकुमार अंशुमान ने कपिल मुनि के आश्रम में जाकर उनसे विनती मांगी और अपने परिजनों के उद्धार के लिए समाधान पूछा। तब कपिल मुनि ने कहा यदि तुम अपने परिजनों का उद्धार करना चाहते हो, तो तुम्हें गंगा माता को धरती पर लाना होगा। यह सुनकर राजकुमार अंशुमान ने मां गंगा को धरती पर लाने की प्रतिज्ञा ली और उन्होंने कठिन तपस्या करनी शुरू कर दी।

राजकुमार अंशुमान के कठिन तपस्या के बाद भी मां गंगा धरती पर नहीं आई। कठिन तपस्या की वजह से राजकुमार अंशुमान की जान चली गई।तब राजा दिलीप के पुत्र और अंशुमान के पौत्र भगीरथ ने घोर तपस्या की। उनकी तपस्या को देखकर गंगा माता बेहद प्रसन्न हो गई। यदि गंगा माता स्वर्ग से सीधे धरती पर आती, तो धरती पर प्रलय हो जाता। गंगा माता को बांधकर रखने की क्षमता सिर्फ भोलेनाथ में थी।

इस वजह से भागीरथ ने भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए तपस्या करनी शुरू कर दी। भागीरथ की तपस्या को देखकर भगवान शिव प्रसन्न हो गए और भगीरथ को मनवांछित वर मांगने को कहा। तब भागीरथ ने भोलेनाथ से गंगा माता को अपने जटा में बांधकर धरती पर धीरे-धीरे प्रवाहित करने की विनती की। तब भोलेनाथ ने भगीरथ की यह इच्छा पूर्ण की।

भागीरथ ने मां गंगा को कपिल मुनि के आश्रम आने का अनुरोध किया। कपिल मुनि के आश्रम में भागीरथ के पूर्वजों की राख रखी थी। पौराणिक कथा के अनुसार गंगा माता के पावन जल से भागीरथ के पूर्वजों का उद्धार हो गया। भागीरथ के पूर्वजों का उद्धार करने के बाद गंगा माता सागर में जाकर मिल गई।

शास्त्र के अनुसार मकर संक्रांति के दिन ही गंगा माता कपिल मुनि के आश्रम पहुंची थी। इसलिए हिंदू शास्त्र में इस दिन गंगा स्नान करने का विशेष महत्व है।

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