Basant Panchami
Basant Panchami का पर्व हर साल धूमधाम से मनाया जाता है। हिन्दू धर्म शास्त्र के अनुसार हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी मनाई जाती है। इस दिन ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत, उत्तर-पश्चिमी बांग्लादेश, नेपाल और कई अन्य देशों में बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है।
बसंत पंचमी कब और क्यों मनाया जाता है ?
Basant Panchami का पर्व मां सरस्वती के अवतरण दिवस में रूप में मनाया जाता है। हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी मनाई जाती है।
बसंत पंचमी की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, उपनिषदों की कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान शिव की आज्ञा से भगवान ब्रह्मा ने जीव-जंतुओं विशेषकर मनुष्य जाति की रचना की। एक बार ब्रह्माजी संसार के भ्रमण पर निकले हुए थे। उन्होंने जब सारा ब्रह्माण्ड देखा तो उन्हें सब मूक नजर आया। यानी हर तरफ खामोशी छाई हुई थी। इसे देखने के बाद उन्हें लगा कि संसार की रचना में कुछ कमी रह गई है।
तब इस समस्या के समाधान के लिए भगवान ब्रह्मा ने संकल्प स्वरूप अपने कमंडल से जल हथेली में लेकर छिड़का और भगवान श्री विष्णु की स्तुति करने लगे। भगवान ब्रह्मा की स्तुति सुनकर भगवान विष्णु तुरंत उनके सामने प्रकट हुए और उनकी समस्या जानकर भगवान विष्णु ने आदिशक्ति दुर्गा माता का आह्वान किया।
भगवान विष्णु द्वारा आह्वान किए जाने के कारण देवी दुर्गा तुरंत वहां प्रकट हुईं, तब ब्रह्मा और भगवान विष्णु ने उनसे इस संकट को दूर करने का अनुरोध किया। ब्रह्मा जी और विष्णु जी की बात सुनकर उसी क्षण आदिशक्ति दुर्गा माता के शरीर से एक भारी सफेद रंग का तेज निकला जो एक दिव्य नारी के रूप में परिवर्तित हो गया।
यह रूप एक चार भुजाओं वाली सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ में वर मुद्रा थी। अन्य दो हाथों में पुस्तक और माला थी। जैसे ही आदिशक्ति श्री दुर्गा के शरीर से निकले तेज से प्रकट हुईं, देवी ने वीणा की मधुर ध्वनि निकाली जिससे संसार के सभी प्राणियों को वाणी मिल गई। जलधारा में कोलाहल था। हवा सरसराने लगी। तब सभी देवताओं ने शब्द और सार प्रदान करने वाली देवी को वाणी की अधिष्ठात्री देवी “सरस्वती” कहा।
तब आदिशक्ति भगवती दुर्गा ने ब्रह्मा जी से कहा कि मेरे तेज से उत्पन्न यह देवी सरस्वती आपकी पत्नी बनेंगी। जिस प्रकार लक्ष्मी श्री विष्णु की शक्ति हैं, पार्वती महादेव शिव की शक्ति हैं, उसी प्रकार यह देवी सरस्वती आपकी पत्नी बनेंगी। इतना कहकर आदिशक्ति श्री दुर्गा सभी देवताओं के सामने ही अदृश्य हो गईं। इसके बाद सभी देवता सृष्टि के संचालन में लग गये।
सरस्वती को वागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित कई नामों से पूजा जाता है। वह ज्ञान और बुद्धि का प्रदाता है। संगीत की उत्पत्ति के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसंत पंचमी का दिन उनके प्राकट्योत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। ऋग्वेद में देवी सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-
प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।
अर्थात् यही परम चेतना है। सरस्वती के रूप में वह हमारी बुद्धि, विवेक और मनोवृत्तियों की रक्षा करने वाली हैं। भगवती सरस्वती हमारे आचार-विचार और बुद्धि का आधार हैं। इनकी समृद्धि एवं स्वरूप वैभव अद्भुत है।
पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि Basant Panchami के दिन उनकी भी पूजा की जाएगी और तभी से इस वरदान के फलस्वरूप ज्ञान की देवी सरस्वती भी भारत में Basant Panchami के दिन पूजा की जाने लगी, जो आज तक जारी है।
Basant Panchami में किसकी पूजा की जाती है ?
माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को हर वर्ष बसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन माँ सरस्वती का प्राकट्य हुआ था इसलिए बसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती की पूजा की जाती है।
Basant Panchami का दूसरा नाम क्या है ?
Basant Panchami पर पीले रंग का महत्व
वसंत ऋतु के आगमन के बाद से प्रकृति में बदलाव देखने को मिलता है। पीले रंग को वसंत ऋतु से जोड़कर देखा जाता है। इसलिए इस दिन पीले रंग के कपड़े पहने जाते हैं। बसंत का पीला रंग समृद्धि व ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। माँ सरस्वती को पीलेरंग से बहुत प्रेम है। इसलिए उनकी पूजा में पीले पुष्प का प्रयोग किया जाता है।
Basant Panchami का दिन ज्ञान की देवी माँ सरस्वती के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। माँ सरस्वती के कारण ही प्रकृति में गति आयी। इस तरह हर साल माँ सरस्वती को बसंत पंचमी के दिन पूजा करके उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।
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